"Kabeer khade bazar me"
"Kabeer khade bazar me, sabki chahe khair;
na kahu se dosti, na kahu se bair.
Kabeer says: "I stand in a market place
and I desire the welfare of all.
I am neither related to anyone,
nor am I an enemy to any one.
Kabeer was above all the religious conflicts,
thus he did not go to any temple, nor to any mosque.
He had selected to sit in the corner
of a market square to preach the people.
He was knowing people of all religions
and cast go to the market for their daily need.
For Kabeer everyone was equal.
Kabeer preached them the truth of life
and blessed welfare for all.
कबीर खड़ा बाज़ार में सबकी मनावत ख़ैर ।
ना काहु सों दोस्ती ना काहु सों बैर ।।
कबीर कहते हैं: "मैं एक बाजार में खड़ा हूं
मैं सभी के कल्याण की कामना करता हूं।
मैं न तो किसीका संबंधी हूं,
न ही मैं किसी का दुश्मन हूं।"
कबीर मानव धर्म के अनुयायी थे।
सभी धार्मिक संघर्षों से ऊपर थे।
कबीर न कभी किसी मन्दिर में गये
और न ही किसी मस्जिद में।
लोगों को मानव धर्म का उपदेश देने के लिए
एक बाजार में एक चौक के कोने में बैठने का निर्णय लिया।
वे जानते थे अपनी दैनिक जरूरत के लिए सभी जाति
और वर्ग के लोग बाजार में आते हैं।
कबीर के लिए सब कोई समान थे।
कबीर ने जीवन भर जीवन की यथार्थता का उपदेश दिया
और सभी के कल्याण की कामना की।
Durga H Periwal
9.9.2020(FB)
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