Across my window Across my window
I was looking at series of high mountains
While enjoying my morning tea.
My confused mind thought that
May be the peaks of mountains
Want to touch the sky
Trying to rise higher ad higher.
Nature does not want them
To rise very high
Thus not giving its support.
Landslide shocks them
Every now and then.
Nature wants to keep their balance.
Mountains rise from the bottom
But due to their EGO and none stop DESIRE
They do not get satisfaction and want to grow.
I would appreciate the wisdom of Pure Water,
Getting hurt whilst falling down
From the heights of mountains.
Nevertheless making musical sound.
Mother earth was extremely happy
And welcomed water on the earth
The savior of life.
The great source of water coming down.
The savior of life-thus
People call water-Elixir.
The water is everyone's hope
and is the basis of joy and favourite.
Water is born on the mountain peaks
Blut without ego coming down on the earth.
Every particles of the earth was
Delighted to get pure water.
The earth is surrounded
With greenery all around
All the gardens bloom with
Flowers blossoms everywhere.
The whole world smells of fragrance of soil
Wonder of the water life
in the world became joyous and cheer.
DIFFERENCE IN ATTITUDE
IN MOUNTAINS AND WATER-
Mountain's base is on the earth but
they want rise and would prefer to reach to sky.
Water's base is on the top of mountains
but water come to the earth and
Support habitants lives.
Who is more equanimous?
Tenacity of refuge give shelter to everyone.
In its innermost atmosphere of the earth
Filled with full of love and wish welfare to
Every habitants of the earth.
And all should have peace of mind.
Compassionate mother nature we all salute you.
मैं अपनी खिड़की से उस पार
ऊंचे पहाड़ों की श्रृंखला देखकर
सुबह की चाय का आनंद ले रही थी।
मेरे भ्रमित दिमाग ने सोचा कि शायद
इन पहाड़ों की चोटियाँ अम्बर
को छूना चाहती हैं, इसलिए अनथक
ऊँचा उठने का प्रयास कर रही हैं।
प्रकृति उन्हें बहुत ऊंचा उठने के
लिए अपना समर्थन नहीं दे रही है।
जब-तब भूस्खलन उन्हें झटका देता है।
प्रकृति चाहती है इनका संतुलन बना रहे।
पहाड़ नीचे से ऊपर उठते हैं किन्तु इनका ग़रूर
या कहूँ इनकी चाहत इन्हें तृप्त नहीं होने देती।
पहाड़ों के दूसरी तरफ देखा ऊँचाईं से
कल कल करता जल का स्रोत आ रहा नीचे
जल का लक्ष्य महान इसलिये कहलाता क्षीर नीर
सबकी आशा सबका आधार करता सबका उपकार।
जन्म लेता है पर्वत शिखर पर जन जन का हित कर
पत्थरों से टकराता कल कल करता मधुर संगीत
सुनाता माँ वसुधा की गोद में पहुँचता सागोंपांग ।
क्षीर नीर को पाकर वसुधा का कण कण हुआ हर्षित
वन उपवन में आया निखार हरियाली छायी चारों तरफ
मिट्टी की सौंधी सुगन्ध से महक गया जग सारा
जग जीवन की क्या बात तृण तृण हुआ प्रफुल्लित।
पहाड़ का उद्गम है पृथ्वी लेकिन वे उठना चाहते
अम्बर तक रहना चाहते आकाश पर पसंद करेंगे।
पानी का उद्गम पहाड़ों की चोटी पर
लेकिन पानी पृथ्वी पर आता है
सदैव जन जनार्दन के प्राणों का आधार।
है और निवास करने वालों का समर्थन करता है।
दोनों में अन्तर भारी किन्तु हैं एक दूजे के पूरक।
कृपया कोई बतायें कौन अधिक है समरूप ?
त्याग तप तेज़ की मूरत महतारी सबको देती पनाह।
इसके अन्तरतम में नेह भरा है किंचित नहीं घबराती।
मन में अरमान सबका हो कल्याण
ऐसी है हमारी कल्याणी मॉ!!
करुणामयी मॉ करते तुझे सलाम।
Durga H Periwal
2021-1-23