नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
(Bhagavad Gita-2.23।।)
I know the soul is formless forever
Soul can not be cut
in pieces with arms.
Fire is unable to consume it.
Wind is not able to dry it.
Water is powerless
to drown the soul.
My inner knowledge is washed away
And forgotten the code of my knowledge.
When my beloved closed his eyes
When his heart beats stopped.
The clouds of clouded mind
I did not know my chest is
Strong like stone.
Even when beloved's heart
stopped beating;
My heartbeats ticking tick tick
In every pore of my body,
May be these precious memories of
my beloved will stay long in my life.
Remembering his sweet words
Soothing my sorrow.
I realize my mind diving in
The ocean of sorrow
Searching where to find
The love of my beloved
I'm human I think like a human.
What did I do wrong
Why did God punished me?
Separated me from joy of my life.
I am a human being think like a human.
आत्मा निर्विकार है सदा,
शस्त्र के अख़्तियार में नहीं आत्मा
को काट सके टुकडों में।
अग्नि इसे भस्म करने में है असमर्थ।
पवन इसे सुखाने में नहीं सक्षम।
आत्मा को।
शक्तिविहीन है जल आत्मा
को नहीं डुबा सकता।
समस्त आत्म ज्ञान धुल गया मेरा।
मैं भूल गयी अपनी ज्ञान संहिता,
एक दिन आया जब
प्रिय ने फेर ली निगाहें
अफ़सानों के बादलों से
घिर गया मन का परकोटा,
सोचा न था मेरा सीना
पत्थर जैसा है मज़बूत।
प्रिय की धड़कन रुक जाने पर भी टिक
टिक करती चल रही मेरी धड़कन।
रोम रोम में बसी हुईं हैं प्रिय की यादें अनमोल
शायद इन यादों की छोर
बनी हुई है मेरे जीवन की डोर।
लम्बे वक्त तक संग रहा अनमोल
प्रिय के मधुर वचनों को याद कर
मेरे दुःख को मिलता है सुकून।
मुझे एहसास है ग़म के सागर में
गोता लगाते मन टटोल रहा
कहॉ मिलेगा मेरे प्रिय का प्यार मुझे?
कहॉ मिलेगें प्रिय पूछेंगे मेरा हाल?
मानव हूँ मानव की तरह सोचती हूँ
ओ ऊपर वाले क्या गुनाह हुआ मुझसे
आनन्दमय जीवन को क्यों खुशी से अलग किया।
By Durga H Periwal
2021-4-20
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